मेरु बचपन Gharwali Poetry Utterakhand

 


मेरु बचपन

उ दिन भी नि भुलैंदा कभी,
जब पूरा गौं म हम खिखलाट मचौन्दा छा,
कखडी मूँगरी अमरूद चोरी,
अपड़ी प्वटिग्यों खूब तचौंदा छा,
आज त गौं म दाना मनखी यकुलांश छुट्या,
होला द्वी चार नौना बाला पर,
सी भी फ्री फायर और पब्जी पर,
ब्वे बाबू की खोपड़ी तचौणा,
घर फुन काम त क्या कन तौन पर,
कामा बाना home work कु बानू दिलोणा,
हम त पुंगडियो मा मोल डाल्दी बार,
दोहा शलोक कविता मिठी भौण मा याद करदा छा,
हिसार तिमला बेड़ू रला की चटकारा लगूंद छा खूब चटाचट,
सी छन खाणा आजकल चिप्स,ओएस, और लेस टकाटक,
खाणु मा फ़ाणु झंगोरु, कंडली कफलु रॉस्याण ही कुछ और ही औंदी छे,
आज त जू ब्रेक फ़ास्ट हुयूँ च,
पास्ता मैगी और सेन्विज बन्यु च,
गोरू दगडी सरक्या यथा मजा औंदी छे कि दिन भर हम गोरू चरोंद छा,
भूख त लगीं रौंदी छे पर, फुट्या कंटर मा खूब नाचन्दा छा,
बीच गाड़ मा ढण्ड़ रौंदी छे अर
तेँ ढंड मा हम दिन भर नंगी न्योन्दा छा,
आजकला त जरा बरखा मा क्या भीगींन त,
तौं ते cough फीवर चट पकङनु,
हम बीमार होंदा भी नि छा,
माना ह्वेई भी गयां त गाड़ छौल लग्युं रान्दू छौ,
सी भी अपडू कुल देवता घौर एकी चट बथुन्दू छौ,
अर करड़ा वार कु बामण दादा काली कुखडी ते छौल भी फुर्र उडोन्दू छो,
और पीन्दा होला सी द्वी तीन पैक,
हमारा त काम करि ते सिक्स पैक दिखयोन्दा छा,
उ दिन भी नि भूलेंदा कभी,
जब हम पूरा गौं मा खिखलाट मचौन्दा छा

राकेश चन्द्र
ग्राम मुस्यागाँव (बच्छणस्यू)
जिला रुद्रप्रयाग
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