युद्ध क बाद ,Gharwali Lekh,Utterakhand


उत्तराखंड की लगूली

लेख
युद्ध क बाद
मूल- चेक लेखक अर्नोशत लुस्तिग
अनुवाद सरोज शर्मा

एर्विन न एक मुड़ी पैंट दिखैकि चिकि से बोलि कि ऐका बदला तु मी क्या देलु?
झिरीं पैंट देखिक चिकी मुस्करै कि बोली कख बटिक ले?मि ऐ बेचणा कि कोशिश कैर सकदु पर अधा म्यांर होलु।
एर्विन क मुख उतरि ग्या्। अचानक बोलि "पितजी मोर गेन"
चिकि बोलि ओ या बात च!
एर्विन न बोलि मी निम्बू चयेणा छन,मेरी भुली थैं निम्बू नि मिला त वा बच नि सकदि।
चिकि न मदद करण क इरादा से बोलि कि मि ज्यादा से ज्यादा एक टुकड़ रव्टि क ल्या सकदु।
और कुछ देर मा चिकि रव्टि लेकि ऐ ग्या्।
रव्टि क टुकड़ा लेकि एर्विन घौर जनै चल ग्या्। कतगा दा वु दृश्य वैकि आंखियू क समणि घूम ग्या्
कन वैन म्वरया पितजी क खुटौं से पतलून उतारि छै। वूंकु शरील अकड़ी ग्या् छा,पितजी कंबुल ओड़िक समणि प्वडयां छा।
जब वु उडयार जन कोठड़ा मा घुसि त सिलांद न परेशान ह्वै ग्या्।
ब्वै कि रुंधी अवाज सुणिक अधा रव्टि क टुकड़ा वैन वीं थमै दया् और अधा अपणि भुली थैं दया्।अफु भूखु प्यासु एक कूणा म प्वडयूं रै। थोड़ा देर मा भैर निकलिक चिकि क पास ग्या्।
चिकि न बोलि कि त्यार पितजी क पास क्वी सोना कि चीज छै?
म्यांर पितजी क पास क्वी सोना कि चीज नि वु भूखन म्वरीं एर्विन न बोलि।
चिकि न बोलि त्वै निम्बू चयेणा छन, वु बुढया जै बटिक मिल पतलून क बदला म रव्टि ले छै बुनु च त्यार पितजी क मुख म क्वी सोना क दांत च ...।
एर्विन से बर्दाश्त नि ह्वै।वैन गुस्सा म चिकि थैं पीट दया् और घौर चल ग्या्। घौर पौंछदा हि ब्वै न बोलि कुछ मिल च?बिन ब्वलयां वु कूण बैठ ग्या् ब्वै क दुबरा पुछण म वु भैर निकल ग्या्।
एक झटका म वैन पिता क कंबलु खींच और एक ढुंग उठैकि सोना कु दांत निकाल दया् और चिकि क पास ग्या् और बोलि कि ऐका बदला मि पूरु निम्बू चंयेद।
अधा हिस्सा म्यांर!चिकि हैंसिकि बोलि, थोड़ा देर बाद चिकि न एक रव्टि क टुकड़ ल्याकि वैक हथ म थमै दया्। निम्बू फिर भि नि मिल।
एर्विन न देखि कुछ लोग वैका घौर जनै टब लेकि जांणा छा।पिता क अंतिम संस्कार खुण।

सरोज शर्मा

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